कहानी संग्रह >> चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की चर्चित कहानियां चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की चर्चित कहानियांचन्द्रधर शर्मा गुलेरी
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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की चर्चित कहानियां...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हिन्दी के अनन्य आराधक और मौलिक प्रतिभा के धनी अमर कहानीकार पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ कहानी सन् 1915 ‘सरस्वती’ में निकली। यह कहानी न केवल मुक्तकंठ से सराही ही गई प्रत्युत कलात्मकता की दृष्टि से इसे अद्वितीय कहानी घोषित किया गया। इन्हीं दिनों कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र की कहानियां भी निकलने लगी थीं। इनकी सर्वप्रथम ‘पंच परमेश्वर’ कहानी ‘सरस्वती’ सन् 1916 में प्रकाशित हुई।
हिन्दी कहानी कला के विकास युग के इस क्रम में ‘सरस्वती’ द्वारा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, ‘इंदु’ द्वारा बाबू जयशंकर प्रसाद और श्री मन्नन द्विवेदी द्वारा सप्तसरोज की भूमिका में प्रेमचन्द का अभ्युदय हुआ। खड़ी बोली हिन्दी के कहानी साहित्य की शिल्पविधि और समूचा विकास युग इन्हीं के व्यक्तित्व से प्रतिष्ठित हो सका। इस बात को हम यों भी कह सकते हैं कि गत पचास वर्षों से हिन्दी की जो अनन्य साधना की जा रही थी उसी के फलस्वरूप कहानी-साहित्य संसार में गुलेरी, प्रसाद और प्रेमचंद के सिंहद्वार खुले। यह हिन्दी कहानी का सौभाग्य ही माना जाएगा कि जिन साहित्यिक मनीषियों द्वारा इसका आविर्भाव हुआ था उन्हीं की सतत साहित्य-साधना से इसका विकास भी हुआ। कहना न होगा कि गुलेरी, प्रसाद और प्रेमचन्द के व्यक्तित्व से पृथक-पृथक कहानी संस्थानों का निर्माण हुआ। परिणामस्वरूप अन्य अनेक अमूल्य कृतियां सामने आईं। कहानी-कला और शिल्प-विधि-विकास-क्रम में प्रसाद और प्रेमचंद से पहले गुलेरी जी का स्थान निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। गुलेरी जी की कहानियां कला के विकास के सिंहद्वार हैं। प्रभाव वे प्रेरणा और साहित्यिक उद्वेलन की दृष्टि से इनका एकान्त स्वतन्त्र स्थान तो है ही। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से गुलेरी जी की कहानियों का पृथक रूप से अध्ययन-अनुशीलन एवं विवेचन-विश्लेषण अपना अलग मूल्य रखता है।
मात्र तीन कहानियां लिखकर हिन्दी कथा साहित्य को नई दिशा और नए आयाम देने वाले प्रख्यात कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1922) की कहानी उसने कहा था आज भी शिल्प, संवेदना और विषयवस्तु की दृष्टि से उतनी ही चर्चित, प्रासंगिक और प्रेरणास्पद है, जितनी उन दिनों थी। लोकजीवन में यह कहानी इस तरह पच गई है कि सामान्य नागरिक इसे लोककथा की तरह सुनाने लगे हैं। किसी कथाकार के कथा-कौशल का उत्कर्ष इससे बड़ा और क्या हो सकता है ! बाद के दिनों में अपने शोध को महत्वपूर्ण साबित करते हुए कुछ लोगों ने उनकी कहानियों की संख्या यद्यपि अधिक बताई है, पर इस पुस्तक के संपादक श्री पीयूष गुलेरी एवं श्री प्रत्यूष गुलेरी उन स्थापनाओं से सहमत नहीं हैं। सुखमय जीवन, बुद्ध का कांटा समेत गुलेरी जी की तीनों कहानियां इस पुस्तक में संकलित हैं। तथ्यात्मक प्रमाण के साथ यह पुस्तक हिन्दी के पाठकों के लिए संग्रहणीय साबित होगी।
हिन्दी कहानी कला के विकास युग के इस क्रम में ‘सरस्वती’ द्वारा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, ‘इंदु’ द्वारा बाबू जयशंकर प्रसाद और श्री मन्नन द्विवेदी द्वारा सप्तसरोज की भूमिका में प्रेमचन्द का अभ्युदय हुआ। खड़ी बोली हिन्दी के कहानी साहित्य की शिल्पविधि और समूचा विकास युग इन्हीं के व्यक्तित्व से प्रतिष्ठित हो सका। इस बात को हम यों भी कह सकते हैं कि गत पचास वर्षों से हिन्दी की जो अनन्य साधना की जा रही थी उसी के फलस्वरूप कहानी-साहित्य संसार में गुलेरी, प्रसाद और प्रेमचंद के सिंहद्वार खुले। यह हिन्दी कहानी का सौभाग्य ही माना जाएगा कि जिन साहित्यिक मनीषियों द्वारा इसका आविर्भाव हुआ था उन्हीं की सतत साहित्य-साधना से इसका विकास भी हुआ। कहना न होगा कि गुलेरी, प्रसाद और प्रेमचन्द के व्यक्तित्व से पृथक-पृथक कहानी संस्थानों का निर्माण हुआ। परिणामस्वरूप अन्य अनेक अमूल्य कृतियां सामने आईं। कहानी-कला और शिल्प-विधि-विकास-क्रम में प्रसाद और प्रेमचंद से पहले गुलेरी जी का स्थान निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। गुलेरी जी की कहानियां कला के विकास के सिंहद्वार हैं। प्रभाव वे प्रेरणा और साहित्यिक उद्वेलन की दृष्टि से इनका एकान्त स्वतन्त्र स्थान तो है ही। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से गुलेरी जी की कहानियों का पृथक रूप से अध्ययन-अनुशीलन एवं विवेचन-विश्लेषण अपना अलग मूल्य रखता है।
मात्र तीन कहानियां लिखकर हिन्दी कथा साहित्य को नई दिशा और नए आयाम देने वाले प्रख्यात कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1922) की कहानी उसने कहा था आज भी शिल्प, संवेदना और विषयवस्तु की दृष्टि से उतनी ही चर्चित, प्रासंगिक और प्रेरणास्पद है, जितनी उन दिनों थी। लोकजीवन में यह कहानी इस तरह पच गई है कि सामान्य नागरिक इसे लोककथा की तरह सुनाने लगे हैं। किसी कथाकार के कथा-कौशल का उत्कर्ष इससे बड़ा और क्या हो सकता है ! बाद के दिनों में अपने शोध को महत्वपूर्ण साबित करते हुए कुछ लोगों ने उनकी कहानियों की संख्या यद्यपि अधिक बताई है, पर इस पुस्तक के संपादक श्री पीयूष गुलेरी एवं श्री प्रत्यूष गुलेरी उन स्थापनाओं से सहमत नहीं हैं। सुखमय जीवन, बुद्ध का कांटा समेत गुलेरी जी की तीनों कहानियां इस पुस्तक में संकलित हैं। तथ्यात्मक प्रमाण के साथ यह पुस्तक हिन्दी के पाठकों के लिए संग्रहणीय साबित होगी।
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